ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत की पूजा की जाती है, ठीक इसी तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा का अनुष्ठान किया जाता है.
इस दिन सुहागिन महिलाएं सुबह पूजा पथ की सामग्री लेकर वट वृक्ष के पास एकत्रित होती है।
तथा वृक्ष पर लाल धागा लपेटती हैं। और अपने पति की सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं।
यहाँ पर सत्यवान सवित्री की कथा पढ़ने के बाद आरती करके पूजा संपन्न होती है।
इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ-साथ बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं
सनातन परंपरा में वट वृक्ष का बहुत महत्व है. इस बार वट पूर्णिमा व्रत 14 जून, मंगलवार को रखा जाएगा.
13 जून दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से लेकर 14 जून को सुबह 9 बजकर 40 मिनट तक रहेगा.
साथ ही शुभ योग 14 जून सुबह 9 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 15 जून सुबह 5 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.
वट वृक्ष की शाखाओं को सावित्री का रूप माना जाता है. सावित्री ही कठिन तपस्या करके अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थीं.